सिनेमा। छत्तीसगढ़ में लोकगीत और संगीत का अपना अलग ही विरासत रहा है। भक्तिकाल से अलिखित साहित्य और मौखित परंपराओं की गीत जनमानस में गुंजती रही हैं, और आगे भी गुंजती रहेंगी। मगर इस नये दौर में कलाकारों की नई पौध न जाने इसे किस दिशा में लेकर जायेंगे वे ही जाने। और दर्शक वर्ग भी बिना किसी संकोच के वाह-वाह करते नहीं थकते। सोशल मीडिया के आने से इन दिनों छत्तीसगढ़ में भी नया दौर का छत्तीसगढ़ी गीत गाने का प्रचलन बड़ा है। कम समय में बहुत अधिक लोकप्रिय गीत दबा, दबा, दबा बल्लू..., दबा बल्लू ने किशन सेन को रातों रात स्टार बना दिया है। जिस तरह से सोशल मीडिया में इस गाने को दर्शकों का प्यार मिल रहा है, ऐसा कह सकते है कि ये नया दौर का गीत है, आगे ऐसे अनेकों गीत प्रचलन में आयेंगे।
दबा बल्लू गीत की बात करें तो किसी प्रकार का अश्लील व फूहड़ता से भरा नहीं हैं, जन सामान्य की शब्दावली है, यंगस्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है। ‘जोन हर देखे कहे का गजब के माल हे, गोलगोल चेहरा अउ घुंघरालू बाल हे। दबा, दबा, दबा रे बल्लू ...., इस गीत की गायकी, संगीत और फिल्मांकन ही इसकी लोकप्रियता का कारण है। शब्द गंभीर नहीं होने के बावजूद भी दर्शकों का इतना प्यार मिलना यही दर्शाता है कि दबा बल्लू जन जन में कितना फैला हुआ था। हर कोई इस शब्द को तकिया कलाम की तरह उपयोग करता था खास कर बेमेतरा जिले के लोकांचलों में बहुत अधिक लोकप्रिय था, कहा जाता है कि बेमेतरिहा जन ही दबा बल्लू के जनक हैं।
किशन सेन के बारे में तरह-तरह की बाते उठने लगी की गीत अच्छा नहीं है, माल कहा जा रहा है जो भद्दे कमेंट की तरह लगता है। चूकि गीतकार गायक युवा है और युवाओं के मनोभाव को समझकर तुकबंदी पेश किये थे लेकिन दबा बल्लू को लोग लड़कियों को कमेंट करने के लिये गाने लगे। शायद इसी वजह से कुछ सामाजिक कार्यक्रम, मड़ई आदि में दबा बल्लू गाना को गाने से मना किया जाता रहा है। एक कलाकार के तौर पर देखे तो किशन सेन पहला शख्स नहीं है जिसने लड़कियों के लिये माल शब्द का उपयोग किये है। कई बड़े-बड़े मूर्धन्य कलाकार भी भाटा वाली, बम के गोला, ए पिरावत हे गा, लेले मुरई लेले, मोर केरा खाबे, खटिया म आना, परोसिन टूरी खाटी हे रे, झन कर जुवानी ल बरबाद, माल बिना ठक ले रे, टूरी फटाका, गदर मताही रे टूरी ह... जैसे गाने भी लोकप्रिय हुए और विरोध का स्वर भी मुखरित हुआ लेकिन कलाकारों ने अपनी अगली प्रस्तुति से ही उस ट्रेंड को तोड़कर स्वच्छ मनोरंजन की ओर लौटे।
दर्शकों के बीच हिट सांग एक फेम उपनाम बनकर उभरता है जैसे किशन सेन को लोग आज ‘दबा बल्लू’ से संबोधित करते हैं। किसन सेन गायकी में अचानक ही नहीं आये दबा बल्लू के पहले भी थे और आगे कई गीत देखने को मिलेगा। बेमेतरा जिले के झलमला गांव का होनहार युवा कलाकार किशन सेन दबा बल्लू के बाद ही बड़े सितारे के रूप में उभरा है इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता। किशन सेन को इस गीत ने नया पहचान दिया, रातों रात नये दौर की छत्तीसगढ़ी गीतकार गायकों की अग्रिम पंक्ती में स्थान दिया। हालांकि सोशल मीडिया के दौर में एक ही गीत की लोकप्रियता को लंबे समय तक बनाये रखना असंभव है। समय का परत, दिगर गानों से दर्शकों का मोहभंग, किसी नये ट्रेंड की शुरूआत अब मिनटों का खेल हो गया है।
सोशल मीडिया के खेल को किसन सेन अब तक समझ ही चुके होंगे और नापसंद करने वालों से कही ज्यादा पसंद करने वाले लोगों की भीड़ में वो खुद को उत्साहित महसूस करते होंगे। किशन सेन की गायकी की शुरूआत और संगीत का सफर आज इस मुकाम तक पहुंच चुका है कि दबा बल्लू के साथ ही दर्जनों गीत छत्तीसगढ़ में गुंज रहा है। ‘आधा रात के आहु, अब खतम होगे कहानी मोर, चलना चलना चटुवापुरी धाम, छोड़व नहीं रे बल्लू, दगाबाज टूरी, झन छोड़बे बही मोर साथ, का मोला मया होगे, कोयली सही तोर बोली, मया वाली होबे त आबे, मोर बिहा करादे, रायपुर के गोरिया, तोर हाथ म मोर नाव लिखाले ओ, तोर सुरता वो...’ किशन सेन के लोकप्रिय वीडियो एल्बमों के बीच यदि ‘दबा बल्लू’ पर नाराजगी नहीं होनी चाहिए। ऐतराज करने वालों से सिर्फ यही कहा जा सकता है कि एक गीत किसी की लाइफ का सर्टिफिकेट नहीं होता, फोक के साथ फ्यूजन सभी आंचलिक लोक संगीतों में देखने को मिलता है। छत्तीसगढ़ी से कही ज्यादा, भोजपुरी, उडि़या, मराठी, बांग्ला, पंजाबी और गुजराती ने नये दौर के संगीत को देखा है। नये-नये गीतों के आने से पुराना खत्म नहीं होता बल्कि ‘ओल्ड इज गोल्ड’ की तरह सदा लोकांचलों में गुंजता रहता है।
किशन सेन की लोकप्रिय वीडियो एल्बम-
 |
Kishan Sen CG singer |
 |
Keshri Sahu CG singer |
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Kusum Prajapati CG singer |
 |
Purnima Gayakwad CG singer |
 |
Sarla gandharv Chauhan CG singer |
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