ममता चंद्राकर केवल नाम नहीं अपितु समग्र छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा, संस्कार और कला की प्रतिमूर्ति है
ममता चंद्राकर (मोक्षदा चंद्राकर) का जीवन परिचय-
- जन्म- 3 दिसंबर 1958 दुर्ग छत्तीसगढ़
- शिक्षा- स्नातकोत्तर( संगीत)
- पिता- दाऊ महासिंह चंद्राकर
- पति- दाऊ प्रेम चंद्राकर
- संतान- पूर्वी चंद्राकर
- संप्रति- सेवानिवृत्त सहायक निदेशक (कार्यक्रम)/कार्यक्रम प्रमुख आकाशवाणी केंद्र रायपुर , छत्तीसगढ़
- सांस्कृतिक संस्था- चिन्हारी
छत्तीसगढ़ की एक आवाज जो गली-गली में आज भी गुंजती है, जिनके बिना कोई भी मांगलिक कार्य या धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता। छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा में गीतों का विशेष स्थान होता है, जन्म, विवाह और मरण संस्कार गीत से ही शुरू और गीत से ही अंत होता है। ऐसे संस्कारित लोक कंठ है स्वर कोकिला श्रीमती ममता चंद्राकर की। ममता चंद्राकर का जन्म 3 दिसंबर 1958 को एक महान संगीतज्ञ दाऊ महासिंह चंद्राकर के घर हुआ।
बालीवुड की संगीत का हिन्दी भाषी राज्यों में काफी बोलबाला था ऐसे समय में दाउ जी ने लोकगीतों को पुन: जन-जन तक पहुंचाने के लिये 1974 में ‘सोनहा बिहान’ नामक सांस्कृतिक संस्था का गठन किया। ममता जी के प्रथम गुरू उनके पिता है बाद में उन्होने इंदिरा कला संगीत विश्व विद्यालय से संगीत की शिक्षा ली और पिता के कार्य को आगे बढ़ाने लगी।
ममता चंद्राकर जी की विवाह 1986 में फिल्म मेकर दाउ प्रेम चंद्राकर जी से हुई। जिनसे 1988 को एक बेटी हुई पूर्वी जो कि अपनी माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाती हुई उनके द्वारा स्थापित ‘चिन्हारी’ नामक सांस्कृतिक संस्था में गायन कर रही है।
ममता चंद्राकर जी लोक गायन के साथ ही आकाशवाणी रायपुर केंद्र में 18 जुलाई 1982 से प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं देकर 31 मई 2018 को सेवानिवृत्त हुई। लोक कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिये भारत सरकार द्वारा 2016 में पद्म श्री से अलंकृत की गयीं।
ममता चंद्राकर जी को केवल छत्तीसगढ़ी की पारंपरकि लोकगीत और संगीत ही भाता है। अब तक की उनकी सभी गीत और विडियों सुपरहिट रही है, गाने रिलीज होने से पूर्व ही लोग सुनने के लिये आतुर रहते है। ददरिया, करमा, जसगीत, विवाह गीत, सुआ गीत, पंथी गीत, फाग गीत, गउरा गउरी गीत के अलावा भरथरी, लोरिक चंदा, गोपी चंदा, चंदैनी की प्रस्तुति भी उनकी टीम चिन्हारी के द्वारा की जाती है। अब का छत्तीसगढ़ काफी कुछ बदल गया है समय के साथ इस वजह से ममता जी की गाने में भी फोकफ्यूजन का प्रभाव पड़ा है किन्तु फूहड़ता बिलकुल भी नहीं है। छत्तीसगढ़ी फिल्म मया देदे मया लेले, मया देदे मयारू, अब्बड़ मया करथंव और लोरिक चंदा में उनको बखूबी देखा जा सकता है।
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