एक साथ दो छत्ती़सगढ़ी फिल्म के बजाए अलग-अलग माह प्रदर्शन हो तो... ?


सिनेमा। आचंलिक सिनेमा के नजरिये से देखे तो कई ऐसे राज्य है, जहां केवल स्थानीय भाषा का बोलबाला होता है वहां एक साथ कितनों ही फिल्म एक ही तारीख को प्रदार्शित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन छत्तीसगढ़ी सिनेमा में कहा जाए तो छत्तीसगढ़ में वो स्थिति बनी नहीं है कि हिन्दी फिल्मों को टक्कर देता हुआ एक साथ कई छत्तीसगढ़ी फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज किया जाए। छॉलीवुड सिनेमा उद्योग भले ही कहा जा रहा है लेकिन मुनाफा कमाने में अभी भी बहुत पीछे है। 

कई जानकारों का तो यहां तक कहना है कि ऐसे सिनेमाघरों की कमी भी है, जो छत्तीसगढ़ी फिल्म लगाने का जोखिम उठाते हैं। अब राजधानी रायपुर की बात करें तो श्याम और अमरदीप ऐसे दो टाकीज है जहां छत्तीसगढ़ी फिल्म प्रदर्शित की जाती है और जहां आम छत्तीसगढि़या दर्शक जा पाते है। मल्टीपलेक्स में भी प्रदर्शित होती है लेकिन वहां खास दर्शक जाते है। इस स्थिति में यदि दो फिल्म प्रदर्शित होती है तो सोचने वाली बात है कि क्यां दर्शक दोनो सिनेमाघरों में दोनो फिल्म देखने जा सकते है।

टाकीज की कमी वाली बात पर गौर करें तो राजधानी रायपुर के साथ ही अन्य  शहरों की भी यही दशा है। अब दर्शकों की बात करें तो अभी-अभी छत्तीसगढ़ में हिन्दी फिल्म के चाहने वाले अधिक है। तेलगू, तामिल, कन्नड, मलयालम, बांगला, भोजपुरी, उडि़सा, मराठी जैसे आंचलिक सिनेमा उद्योग के समकक्ष आने में छत्तीसगढ़ी को ज्यादा वक्त भी नहीं लगेगा। क्योकि फिल्में बन रही है, कलाकारों को काम मिल रहा है, और दर्शक भी आ रहे है। इन सब के बावजूद कमाई नहीं कर पाने के मामले में जानकार कहते है कि यहां अब भी सुनियोजित तरीके से फिल्म का निर्माण और प्रदर्शन पर काम नहीं किया जाता है। सतीश जैन जैसे कुछ ही निर्माता निर्देशक है जो टायमिंग को चेस करते है। जिसके कारण उनको सफलता मिलती है। 

खैर फिल्म की सफलता और असफलता का कारण प्रदर्शन की तारीख नहीं है। यहां भी अच्छी फिल्में बनती है, चलती है और कमाई भी होता है। तो क्यों न सुनियोजित तरीके से काम किया जाए। इन सब के पीछे सिनेमा में एकता न होना देखा जा रहा है। कई संगठनों में बटा हुआ छॉलीवुड उद्योग अपनी भलाई के लिए कुछ कारगर कदम उठाने के बजाए सरकार की मुंह ताक रही है। छत्तीसगढ़ी फिल्म विकास बोर्ड बनाने से लेकर अध्यक्ष के पद तक के लिये चर्चाएं होती है लेकिन अच्छी फिल्म कैसे बनाये, दर्शकों की रूचि क्या है। कैसे यहां सिनेमाघरों को बढ़ाये जाए, किस प्रकार छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी सिनेमा फलता-फूलता वृक्ष बनेगा और कब उसके छांव में कलाकारों को रोजी-रोटी मिलेगा। क्यों ऐसे विषयों पर चर्चा नहीं होती?

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