संस्कार और परंपराओं की स्वयमेव यूनिवर्सिटी लोकरंग अर्जुन्दा से निकला कोरियोग्राफर सतीश साहू, मंच से अब सिनेमा में
छॉलीवुड। छत्तीसगढ़ी वीडियो एलबम में इन दिनों नृत्य की नई अदायगी देखने को मिल रहा है। पारंपरिक धूनों में लोक नृत्यों की बानगी के साथ फ्यूजन में आधुनिकता का तड़का बखूबी नजर आ रहा है। एक ओर जहां छत्तीसगढ़ की लोकगीतों की मीठास बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है, वहीं दूसरी ओर उतना ही सुंदर भावनृत्य मनोरंजन के आनंद को और भी दोगुना कर जाता है। जी हां इन दिनों फोक के साथ फ्यूजन का जबरदस्त तड़का मिल रहा है, और ये कमाल करने वाले कलाकार है लोकरंग अर्जुन्दा के लोक कलाकार व कोरियोग्राफर सतीश साहू।
सतीश साहू छत्तीसगढ़ी कला जगत के लिये कोई नया नाम नहीं है, किन्तु उन्होंने वर्तमान समय में जो एक कोरियोग्राफर के रूप में नइ पहचान बनाई, वें जरूर उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। सतीश लोकमंच का कलाकार है जो प्रदेश की प्रतिष्ठित सांस्कृतिक संस्था लोकरंग अर्जुन्दा में बतौर भाव कलाकार के रूप में कला जीवन का आरंभ करते है। लोकरंग अर्जुन्दा जो मात्र एक संस्था नहीं अपितु लोक संस्कार और परंपराओं की स्वयमेव यूनिवर्सिटी है।
लोक कलाओं के प्रति जीवट कलाकार दाउ दीपक चंद्राकर के सानिध्य में सतीश भी प्रदेश के सभी अंचलों सहित देश के कई शहरों में अनेक प्रस्तुतियां दे चुके है। ऐसे अनुभवी कलाकार अब लोककला की क्षितिज से सिनेमा की बुलंदी पर पहुंचने को आतुर है। कुछ ही दिनों में सतीश की बतौर कोरियोग्राफी और अभिनीत दर्जनों वीडियो एलबम सोशल मीडिया में धमाल मचा रहा है। “तोर ले मया होगे, चल न संगी रे, मया भंवरा, दीवाना मोला का होगे, राधा पांव के पैरी तोर,पैरी के सरगम, पिरित के रंग” में सतीश साहू के काम को काफी पसंद किया जा रहा है।
वीडियो एलबम में वे काफी मेहनत करते है। सहयोगी कलाकार के साथ घंटों अभ्यास उनकी अर्जुन्दा के दिनों को याद दिलाता है। प्रस्तुति के पूर्व पूरी टीम तन्मयता के साथ अभ्यास करते थे, जब तक की बेहतर होने की संतुष्टि न मिले। हालांकि सिनेमा रंगमंच से काफी अलग है, गलती सुधारने का मौका देता है लेकिन लोक कलाकार सतीश साहू कोई चूक नहीं करना चाहते। बहरहाल अभी कोरोना के कारण रंगमंच का काम बंद है ऐसे में लोक कलाकार सिनेमा से ही दर्शकों के बीच पहुंच रहे है।
यू्ट्यूब - Choreographer Satish Sahu
फेसबूक - सतीश साहू लोकरंग अर्जुन्दा
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