छालीवुड का सिनेमा बाजार घाटे में चल रहा है। कलाकारों से लेकर निर्माता-निर्देशक आर्थिक मंदी का दंश झेल रहे है। कुछ ही फिल्म अपनी निर्माण लागत वसुल कर पाता है बाकि अन्य तो कलाकारों को मानदेय भी नहीं दे पाते है। छालीवुड में फिर भी फिल्म बननी कम नहीं हुई, छत्तीसगढ़ी फिल्म मेकरों को सलाम, घाटे में भी फिल्म बनाने का हौसला करते है। कलाकार यहां इतने मिलते है कि कुछ न दो तो भी काम करने को तैयार है। कुछ व्यवसायिक रूप से अभिनय को अपनाने वाले कलाकार अब पलायन पर रहे है। छत्तीसगढ़ के ज्यादातर कलाकार भोजपुरी के रास्ते मुंबई महानगर में प्रवेश के लिये गॉडफादर की तलाश करने में लगे।
सैकड़ों फिल्में बनने के बाद भी ऐसे हालात क्यों है, ये सबसे बड़ा सवाल? फिल्म में सब कुछ है फिर भी छत्तीसगढ़ में असफल क्यों? इन सवालों के जवाब स्वयं छालीवुड को ही देना होगा।
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध फिल्म मेकर डॉ. पुनीत सोनकर बता रहे है छालीवुड के असफलता का मुख्य कारण-
- हम फिल्म तो बनाते है लेकिन दर्शक नहीं बनाते
- छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति को महत्व नहीं देते
- भाषा के साथ न्याय नहीं करते
- मौलिक चीज नहीं दिखाते
- छत्तीसगढ़ी से प्यार नहीं करते
- अस्सी प्रतिशत नकल होता है
साहित्यिक लोगो से कहानी लिखवाए और संवाद गीत भी।पारंपरिक के साथ जो बदलाव हो रहे है उन्हॆ भी दिखावे।
जवाब देंहटाएंयहाँ की एतिहासिक, समाजिक व्यवस्था व सांस्कृतिक तथ्यों को फिल्मांकन
जोरदार बोले हे सोनकर जी ह
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